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________________ [ जिनवरस्य नयचक्रम् क्यों, कैसे ? जैसे कि हमारी दृष्टि से बादाम के पेड़ का लगाना, उसे सींचना, बड़ा करना आदि सम्पूर्ण मेहनत बादाम की मींगी अर्थात् निश्चय - बादाम के सेवन के लिए ही तो है; पर यदि इस लोभ से कि जब छिलके ने मींगी की सुरक्षा के लिए इतनी कुर्बानी दी इतनी वफादारी निभाई है, तो फिर उसे तोड़ें क्यों, फोड़ें क्यों ? - ऐसा सोचकर उसे तोड़ें नहीं तो क्या बादाम का सेवन अर्थात् हलुवा बनाकर खाना संभव होगा ? " ५४ ] नहीं, कदापि नहीं । तो फिर जो कुछ भी हो, सम्पूर्ण मेहनत की सार्थकता इसमें ही है कि परिपक्वावस्था में पहुँच जाने पर छिलके को तोड़ दिया जाय, फोड़ दिया जाय; तभी जाकर बादाम का हलुवा खाया जा सकता है । हाँ, यह बात अवश्य है कि उसे पूर्णतः पक जाने पर ही फोड़ा जाए, यदि कच्ची या अधपकी फोड़ दी तो वह लाभ प्राप्त नहीं होगा, जो हम चाहते हैं । यह भी हो सकता है कि लाभ के स्थान पर हानि भी हो जावे । इसीप्रकार जिनवाणी और उसमें बताये मार्ग पर चलकर सुख-शांति प्राप्त करने के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि बादाम के छिलके को तोड़ने के समान व्यवहार का भी निषेध करें, अन्यथा व्यवहार द्वारा प्रतिपादित निश्चय के विषयभूत अर्थ की प्राप्ति नहीं हो सकेगी अर्थात् श्रात्मा का अनुभव नहीं हो सकेगा और हम व्यवहार में ही अटक कर रह जायेंगे । यदि व्यवहार के उपकार याद कर करके हम उसका निषेध न कर पाये तो विकल्पों में ही उलझे रहेंगे, विकल्पातीत नहीं हो सकेंगे । हाँ, यह बात अवश्य है कि व्यवहार का निषेध व्यवहारातीत होने के लिए परिपक्वावस्था में ही होता है, पहले नहीं । यदि पहले करने जावेगे तो न इधर के रहेंगे, न उधर के । परिपक्वावस्था माने वृद्धावस्था नहीं, अपितु व्यवहार द्वारा परिपूर्ण प्रतिपादन होने के बाद निश्चय की प्राप्ति होना - लेना चाहिए । जैसे नाव में बैठे बिना नदी पार होंगे नहीं औौर नाव में बैठे-बैठे नदी पार होंगे नहीं । नाव में नहीं बैठेंगे तो रहेंगे इस पार और नाव में बैठे रहेंगे तो रहेंगे मँझधार । नदी पार करने के लिए नाव में बैठना भी होगा और नाव को छोड़ना भी होगा अर्थात् नाव में से उतरना भी होगा । उसी प्रकार व्यवहार के बिना निश्चय समझा नहीं जा सकता और व्यवहार को छोड़े बिना निश्चय पाया नहीं जा सकता । निश्चय को समझने
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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