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________________ १७४ ] [ जिनवरस्य नयचक्रम् क्या जिनवाणी का अध्ययन उलझना है और पण्डित बनना कोई पाप है, जो आप ऐसा कहते हैं कि हमें कोई पण्डित थोड़े ही बनना है, जो इनमें उलझे । अरे, पण्डित बन जाप्रोगे तो कोई नरक में नहीं चले जाओगे। जिनवाणी का अध्ययन उलझना नही, सुलझना है और पण्डित बनना हीनता की नहीं, गौरव की बात है। लगता है पण्डित शब्द का वास्तविक अर्थ आप नहीं जानते, इसीलिए ऐसी बातें करते है। आत्मज्ञानी ही वास्तविक पण्डित होते है । बनारसीदासजी, टोडरमलजी और समयसार के हिन्दो टोकाकार पण्डित जयचंदजी छाबडा भी तो पण्डित ही थे। 'आप कहे तो चाहे जितना खर्च कर सकते है, पर इन में उलझना अपने वश की बात नही है' - इस कथन में आपकी यह मान्यता ही स्पष्ट होती है कि दुनियाँ की सब चीज धन से प्राप्त की जा सकती है। पर ध्यान रविए; ज्ञानस्वभावी आत्मा ज्ञान में ही प्राप्त होगा, धन से नही । यहाँ आपका धन किसी काम नहीं पायगा। यदि आप जिनवारणी के अध्ययन को उलझना ममझते हैं तो आपको ज्ञानस्वभावी आत्मा कभी समझ में नही आयगा। तथा यह कहना कि 'हमारे पास इतना समय नही है, जो इसमे माथा मारे । हमें तो सीधा-सच्चा मार्ग चाहिए।' - यह भी कितना हास्यास्पद है कि 'समय नही है', अरे! कहाँ चला गया है समय ? दिन-रात मे तो वही चौबीस घण्टे ही हो रहे हैं। यह कहिए न कि विषय-कषाय से फुरसत नही है, धूल-मिट्टी जोडने से फुरसत नही है। परन्तु भाई ! ये मब निगोद के रास्ते हैं, नरक के रास्ते हैं ; इनसे समय निकालना ही होगा। धन्धे-पानी और विषय-कषाय में उपयोग बर्बाद करने को ज्ञान का सदुपयोग और आगम के अध्ययन को माथा मारना कहनेवालों को हम क्या कहें ? ___'इन्हें तो सीधा-सच्चा मार्ग चाहिए' - भाई ! मार्ग तो सीधा-सच्चा ही है। तुमने अपनी अरुचि से उसे दुर्गम मान रखा है या फिर धर्म के नाम पर धन्धा करनेवालों ने तुम्हें बहका रखा है, जो ऐसी बातें करते हो। ___ शान्त होवो ! धैर्य से सुनो !! सब-कुछ समझ में आवेगा !!! सब-कुछ सहज है; जिनवाणी में सर्वत्र सुलझाव ही सुलझाव है, कहीं कोई उलझाव नहीं है। हाँ, यह बात अवश्य है कि यदि आपकी बुद्धि मन्द है और शक्ति क्षीण है तो जितना बन सके, उतना स्वाध्याय करो; पर जिनवाणी के
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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