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________________ १३६ ] [ जिनवरस्य नयचक्रम् इसे निम्नलिखित चार्टों द्वारा अच्छी तरह समझा जा सकता है : चार्ट १ सद्भूतव्यवहारनय व्यवहारनय चार्ट २ (१) शुद्धसद्भूतव्यवहारनय (२) अशुद्धसद्भूतव्यवहारनय असद्भूतव्यवहारनय (३) अनुपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनय (४) उपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनय उपनय ( व्यवहारनय) सद्भूतव्यवहारनय (३) प्रसद्भूतव्यवहारनय (४) उपचरितासद्भूतव्यवहारनय (१) शुद्धसद्भूतव्यवहारनय (२) अशुद्धसद्भूतव्यवहारनय उक्त चार्टों में व्यवहारनयों के प्रभेदों में जो क्रमांक दिये गये हैं, वे परस्पर एक-दूसरे के स्थानापन्न हैं । अतः दोनों प्रकार के वर्गीकरणों में कोई मौलिक भेद नहीं है । दोनों प्रकार के वर्गीकररणों को देखकर भ्रमित होने की आवश्यकता भी नहीं है, किन्तु उन्हें जान लेने की आवश्यकता भी अवश्य है । असद्भूतव्यवहारनय ( अनुपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनय) और उपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनयों के स्वजातीय, विजातीय और मिश्र ( स्वजातिविजातीय) के भेद से तीन-तीन भेद किए गये हैं । यहाँ प्रसद्भूतव्यवहारनय (जिसे अनुपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनय भी कहा जाता है ) द्रव्य में द्रव्य का उपचार आदि नौ प्रकार के उपचारों प्रवृति करता है । तथा यही प्रसद्भूतव्यवहारनय भिन्न द्रव्यों, उनके गुणों और पर्यायों के बीच पाये जानेवाले अविनाभावसंबंध, संश्लेषसंबंध, परिणाम
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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