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________________ व्यवहारनय : भेद-प्रभेद ] [ १२१ उनपर अधिक बल दे दिया गया तो देश की एकता व स्वतन्त्रता खतरे में पड़ सकती है। उसीप्रकार एक द्रव्य में गणभेदादि-भेद जिस प्रयोजन से किये गये हैं, उसी मर्यादा में उनकी सार्थकता है, वजन है। यदि उनपर आवश्यकता से अधिक बल दिया गया तो द्रव्य की एकता व स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है। अतः यह सावधानी अपेक्षित है कि उनपर आवश्यकता से अधिक बल न पड़े। इस बात को अधिक स्पष्टता से इसप्रकार समझ सकते हैं : भारत एक सर्वप्रभूता-सम्पन्न स्वतन्त्र देश है। प्रशासनिक दृष्टि से अथवा क्षेत्र की दृष्टि से उसका विभाजन उत्तरप्रदेश, गुजरात आदि प्रदेशों में किया गया है। तथा कार्यों की दृष्टि से उसे गृह विभाग, सुरक्षाविभाग, खाद्यविभाग, यातायातविभाग आदि विभागों में भी बाँटा गया है। इसीप्रकार हमारा प्रात्मा सर्वप्रभुतासम्पन्न स्वतन्त्र द्रव्य है । क्षेत्र की दृष्टि से वह असंख्यातप्रदेशी है तथा गुणधर्मों या शक्तियों की दृष्टि से वह ज्ञानादि अनन्त गुणोंवाला अर्थात् अनन्त शक्तियों से सम्पन्न है। उक्त विभाजनों से न तो देश विभक्त होता है और न द्रव्य, क्योंकि विशेष दृष्टिकोण से किया गया उक्त विभाजन एकत्व का विरोधी नहीं होता। । यद्यपि यह बात सत्य है कि राजस्थान गुजरात नहीं है और गुजरात राजस्थान नहीं है, तथापि दोनों भारत अवश्य है। भारत सरकार के गृहविभाग, यातायातविभाग, खाद्यविभाग आदि विभागों का कार्यक्षेत्र राजस्थान, गुजरात आदि प्रदेशों सहित सम्पूर्ण भारत है। वे भारत के सभी प्रदेशों में निर्बाधरूप से कार्य कर सकते हैं। इसीप्रकार यद्यपि सभी विभाग स्वतन्त्ररूप से अपना कार्य करते हैं, पर वह स्वतन्त्रता विभाजक नहीं बनती। यह नहीं हो सकता है कि रेलवेविभाग अनाज न ढोवे और कोई प्रदेश भारतीय रेलों को अपने में प्रवेश ही न करने दे, क्योंकि स्वतन्त्र होते हुए भी वे एक-दूसरे से संयुक्त रहते हैं। इसीप्रकार आत्मद्रव्य के ज्ञानादि अनन्तगुण असंख्यप्रदेशों में सदा सर्वत्र विद्यमान रहते हैं तथा एक गुण का रूप दूसरे गुण में पाया जाता है। __ यद्यपि देश का उक्त विभाजन देश के कर्णधारों के द्वारा ही किया जाता है, तथापि जब प्रान्तीयता सिर उठाने लगती है या कोई विभाग
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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