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________________ १०८ ] [ जिनवरस्य नयचक्रम् गुण में द्रव्य का उपचार, गुण में पर्याय का उपचार ; पर्याय में द्रव्य का उपचार और पर्याय मे गुण का उपचार - इसप्रकार नौ प्रकार का असद्भूतव्यवहारनय का अर्थ जानना चाहिए।" सद्भूत और असद्भूत - दोनों ही व्यवहारनय अनुपचरित और उपचरित के भेद से दो-दो प्रकार के होते है। इसप्रकार व्यवहारनय चार प्रकार का माना गया है। वे चार प्रकार निम्नानुसार है :१ अनुपचरितसद्भूतव्यवहारनय २ उपचरितसद्भूतव्यवहारनय ३. अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय ४ उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय अनुपचरितसद्भूतव्यवहारनय को शुद्धसद्भूतव्यवहाग्नय तथा उपचरितसद्भूतव्यवहारनय को अशुद्धमद्भूतव्यवहारनय भी कहा जाता है । उक्त सम्पूर्ण स्थिति को हम निम्नलिखिन चार्ट द्वारा अच्छी तरह समझ मकते है - व्यवहारनय मद्भूतव्यवहाग्नय प्रसद्भूतव्यवहारनय - -- - उपरितसद्भूतव्यवहारनय अनुपचरितसद्भूतव्यवहारनय या शुद्धसद्भूतव्यवहारनय या अशुद्धसद्भूतव्यवहाग्नय अनुपचरित अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय उपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनय __अब यहाँ व्यवहारनय के उक्त चारो भेदो के स्वरूप एव उनकी विषयवस्तु के सम्बन्ध में जिनागम के आलोक मे विस्तृत विचार अपेक्षित है। (क) निरुपाधि गुण-गुणी मे भेद को विषय करनेवाले अनुपचरितसद्भूतव्यवहारनय के स्वरूप व विषयवस्तु को स्पष्ट करनेवाले कतिपय शास्त्रीय उद्धरण इसप्रकार है :
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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