SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ईश्वर क्या है? ४७ होता है तो यह कथन भी यथार्थ नहीं है; क्यों कि शीतोष्ण आदि पदार्थ तो एक दूसरेके विरुद्ध है। ऐसे विरोधी पदार्थोका ज्ञान एक ही समयमें किस प्रकार प्राप्त हो सकता है? यदि कोई कहे कि मुख्य, पदार्थोंका ज्ञान होनेसे उसीमें सब कुछ आ जाता है तो यह भी ठीक नहीं है, क्यों कि अवशिष्ट पदार्थोंके ज्ञान बिना उसे सर्वज्ञ नहीं कह सकते । मीमांसकोके कथनका मुख्य आशय यही है कि सर्वज्ञता असम्भव है । अब जैनाचार्य इसका युक्ति और प्रमाणपुर सर उत्तर देते है । वे कहते हैं चक्षुमें देखनेको शक्ति है, परन्तु वह शक्ति अन्धेरेमें कुछ काम नहीं देतो, वह अव्यक्त रहती है । प्रातःकाल जब पूर्व दिशामें भगवान् अंशुमालीकी किरणें प्रकट होती है, रात्रिका अन्धकार विलीन हो जाता है तब नेत्रोंकी रूपग्रहण करनेवाली शक्ति काम करने लगती है । उस समय आसपासके पदार्थ देखे जा सकते है । आत्माका व्यापार भी इसी प्रकारका है । जगतके सभी पदार्थ देखनेकी (जाननेकी) उसमें शक्ति है, सर्वज्ञता. इसका स्वभाव है । परन्तु अनादि ज्ञानवरणीयादि कर्मोंके संयोगसे वह वैसे ही पड़ी रहती है । इसका सर्वज्ञत्वस्वभाव अपरिस्फुट रहता है । सम्यक् तपस्यासे जब जीवका कर्ममल जल जाता है तभी आत्मा अपने शुद्ध स्वभावको - सर्वज्ञताको प्राप्त होता है । यह बात समझमें भी आसानीसे आ सकती है। पदार्थमात्रको ग्रहण करनेकी शक्ति तथा स्वभाव आत्मामें है या नहीं, इस विषय में विवादकी आवश्यकता नहीं है । यह तो स्वयं
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy