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________________ ईश्वर.क्या है? हो तो कोई हर्ज नहीं, अथवा अनुमान आदिकी सहायतासे आप पूर्णसत्त्वके सिद्धान्तको स्वीकार करें, यह भी ठीक है, परन्तु वास्तविक जगतमें सचमुच कोई व्यक्ति पूर्णसत्त्ववाली है- पुरुषप्रधान है - यह किस प्रकार कहा जा सकता है ? आपकी मनको धारणा कल्पनामात्र नहीं है, यह आप कैसे कह सकते है ? आपके पास प्रमाण या युक्ति क्या है ?" प्राचीन भारतमें प्रधानतः योगदर्शन-कथित ईश्वरवादके सामने इसी प्रकारका विरोध उत्पन्न हुवा था। भोजवृत्तिमें इसका आभास पाया जाता है___"यद्यपि सामान्यमानेऽनुमानस्य पर्यवसितत्वात् न विशेषावगतिः संभवति, तथापि शास्त्रादस्य सर्वशत्वादयो विशेषा अवगन्वयाः।" , " ज्ञानादिके तारतम्यसे निरतिशय ज्ञानके आधाररूप ईश्वरका जो अनुमान किया जाता है वह एक निर्विशेष सामान्यकी उपलब्धिके अतिरिक्त और कुछ नहीं है। ईश्वरके किसी विशेष गुणका परिचय नहीं मिलता।" पाश्चात्य दार्शनिक कान्ट भी यही बात कहता है । भोज मानता है कि शास्त्रोकी सहायतासे ईश्वर सम्बन्धी विशेष ज्ञान प्राप्त हो सकता है। कान्ट भी इतनी बात तो स्वीकार करता ही है । सांख्य और योगदर्शनमें मौलिक भेद नहीं है। तथापि कपिल मुान, पतञ्जलिके ईश्वरवादको स्वीकार नहीं करते । वे स्पष्ट कहते है "ईश्वरासिद्धः।" विषयाध्याय ९०। । । प्रमाणोंसे ईश्वर सिद्ध नहीं हो सकता। , - पतञ्जलिके समान जैनाचार्य भी एक अद्वितीय ईश्वरका स्वीकार
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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