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________________ जिनवाणी ईश्वर करुणामय है तो उसने ऐसा शरीर क्यों बनाया है कि जिससे जीवको ऐसी ऐसी यातनाएं भोगनी पडे ? 'मनुष्यको संसारमें बहुविध दुःख भोगने पड़ते है, इसके लिये सृष्टिकर्ता ईश्वर स्वयं उत्तरदाता है' - इस आक्षेपसे ईश्वरको मुक्त करनेके लिये थिईस्ट ( ईश्वरवादी) कहते है कि, मनुष्य जैसा बोता है वैसा काटता है। मनुष्य स्वयं ही अपने दुःखके लिये उत्तरदाता है। ईश्वर तो मनुष्योंके सुखके लिये निरन्तर प्रयत्न करता रहता है। ऐसा प्रबन्ध किया गया है कि ईश्वरीय व्यवस्थासे सदैव प्राणीको सुख ही मिले । मनुष्य अपने लोभ, छलकपट आदिके कारण दुःख, रोग, शोकमें फंस जाए तो ईश्वर क्या करे । ईश्वरको बीचमें फंसानेकी आवश्यकता नहीं है । इस बचावको यथार्थ नहीं कहा जा सकता। क्यों कि हम अनेक बार सज्जन पुरुपको दुःख और शोक-संतापके भारी भारसे दबा हुवा देखते है। प्राचीन यहूदी कहते थे कि, 'ईश्वरने तो मनुष्योंके लिये साधारणतः सुखकी हो व्यवस्था की थी, परन्तु मनुष्य सीधे रास्ते पर न चला । यह उल्टे रास्ते पर चला इसी लिये बाग-ए-अदनसे बहिष्कृत किया गया। इस अत्यन्त प्राचीन कालके पापका दंड मनुष्यजाति आज भोग रही है । इसी पापके परिणाम स्वरूप मनुष्य वंशपरम्परासे रोग, शोक, मृत्यु आदि यन्त्रणाएं भोग रहा है। कैसी विचित्र वात है ? आदम और ईपके पापकी सजा, आदिकालसे लेकर इस समय तक उनके वंशजोंको भोगनी पड़ती है, इसमें ईश्वरकी करुणा कहां रही ? भारतवर्ष मनुष्य जातिके दुःख, कष्ट, जन्म और जरा मृत्युके संबन्धमें जो स्पष्टीकरण करता है वह बुछ युक्तिसंगत
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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