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________________ २७ पढे जायं तो सचमुच, वह अभ्यास रुचिकर हो सकता है। श्रीयुत् भट्टाचार्यजीने तो केवल उपक्रम करके हम लोगोंको सचेत भर किया है। सातवां निवन्ध भारतीय इतिहास-खास कर जैन परंपराके प्राचीन इतिहास- की दृष्टिसे बहुत महत्त्वका है। यह ठीक है कि, महाराजा खारवेलका नाम दिगम्बर श्वेताम्बर परम्पराके उपलब्ध साहित्यमें कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता। यह भी ठीक है कि, खारवेलके शिलालेखकी उपलब्धिके पहिले खारवेलका नाम न जैन परंपराको विदित था और न अन्य किसी परम्पराको । तो भी उस अज्ञात लेखके ज्ञात होने पर तथा अनेक विद्वानोंके द्वारा उसके अर्थ निकाले जाने पर यह तो निर्विवाद ज्ञात हो ही जाता है कि महाराजा खारवेल जैन परम्पराके अनुगामी और समर्थक रहे है। ___ भगवान् महावीरके समयमें चेटक, श्रेणिक, कोणिक, शतानिक आदि राजे थे, जो भगवान महावीरके पास आते जाते भी थे। इसी तरह चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्पतिका भी जैन परम्परासे संबंध रहा । उत्तर कालमें शक साही, विक्रमादित्य,आमराज, सिद्धराज, कुमारपाल, महम्मद तुगलख, अकबर आदि अनेक राज्यसत्ताधारी ऐसे हुए है जिनका जैन संघ या जैन विद्वानके साथ कुछ न कुछ सम्बन्ध रहा। इसी तरह दक्षिणमें गंग, कदम्ब, चोल, पाण्ड्य, राष्ट्रकूट आदि वंशके अनेक राजे तथा अन्य सत्ताधारी ऐसे हुए जिनका जैन परम्परासे कुछ न कुछ महत्त्वका सम्बन्ध रहा। उन सवका थोडा बहुत निर्देश जैन साहित्यमें, शिल ६. 'मिडिवल जनिझम'-डॉ. सालेटोर। _ 'जैनिझम एण्ड कर्नाटक कल्चर'-शर्मा ।
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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