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________________ २३२ जिनवाणी है वेदनीय कर्मकी अपरा स्थिति १२ मुहूर्त नाम और गोत्र कर्मकी अपरा स्थिति ८ मुहर्त है। शेष कर्माकी अपरा स्थिति १ अन्तर्मुहर्त है। एक आकाश प्रदेगमेंसे पासवाले ही दूसरे आकाश प्रदेशमें मन्द गतिसे जानेमें एक परमाणुको जितना समय लगता है उसका नाम समय है। असंख्य समयकी एक आवली अर्थात् निमेपकाल होता है। अन्तर्मुहूर्तके दो प्रकार है-- एक जघन्य और दूसरा उत्कृष्ट । एक आवली -एक समय = एक "जघन्य अन्तर्मुहुर्त"। १ मुहूर्तकी ४८ मिनिट होती है। १ मुहूर्त-१ समय =(एक समय कम करनेसे) एक " उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त " जैन शालमें मुहूर्त तथा अन्तर्गतका दो अर्थोमें वर्णन है। कर्मका अनुभाग कर्मके आस्रवसे जीवको बन्ध होता है। फलकी तीव्रता या मन्दताके हिसावसे कर्मवन्ध भी तीत्र और मन्द गिना जा सकता है। कर्मके अनुभाग-वन्ध-के साथ फलकी तीव्रता और मन्दताका अत्यन्त निकट सम्बन्ध है। अनुभाग-बन्धका अर्थ फल देनेकी शक्ति भी हो सकता है। अनुभाग-वन्धको कभी कभी अनुभव [रस] भी कहा जाता है। ".९ समयसे अधिक काल जघन्य अन्तर्मुहूर्त, और ४८ मिनिटसे एक समय कप जितना फाल उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त समझना । और पूरी ४८ मिनिटका एक मुहूर्त होता है। (मु. श्री.दर्शनविजयजी)
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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