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________________ २०८ जिनवाणी जाई गई हुई कलिंग जिनमूर्तिको ००० और गृहरत्नोंको लेकर प्रतिहारों द्वारा अंग-मगधका धन ले आया । (१३) ००००००००० अन्दरसे लिखेहुवे (खुदे हुवे ) सुन्दर शिखर बनवाए। साथ ही सौ कारीगरोंको जागीरे दा । अद्भुत और आश्चर्य ( उत्पन्न हो इस प्रकार वह ) हाथियोंवाला जहाज भराहुआ नजराना हय, हाथी, रत्न, माणिक्य पांड्य राजाके यहांसे इस समय अनेक मोती, मणि, रत्न हरण करा लाया। यहां इस शक्त ( योग्य महाराजने ) (१४) ००००००००० सीओंको वशमें किया । तेरहवें वर्षमें पवित्र कुमारी पर्वत पर जहां (जैनधर्मका) विजयचक्र सुप्रवृत्त है, प्रक्षीणसंसृति (जन्ममरणको पारपाये हुए ) कायानिपीदी ( स्तूप ) पर ( रहनेवाले) पाप बतानेवालों (पापज्ञापकों ) के लिये व्रत पूरा होनेके पश्चात् मिलनेवाली राजभृतियां कायम कर दी ( शासन निश्चित कर दिये ) । पूजामें रत उपासक खाखेलने जीव और शरीरकी श्रीकी परीक्षा कर ली। ( जीव और शरीरको परख लिया | ) (१५) ०००००० सुकृतिश्रमण सुविहित शत दिशाओंका ज्ञानी, तपस्वी, ऋषि संघी लोगोंके ०००००० अरिहंतकी निषीदीके पास, पहाड़ पर, उत्तम खानोंमेंसे निकालकर लाए हुवे अनेक योजनोंसे लाए हुवे ०००००० सिंहप्रस्थवाली रानी सिंधुलाके लिये निःश्रय ००० (१६) ०००००० घंटयुक्त (०) वैडुर्य रत्नवाले चार खम्मे १. यह नाम खडगिरिं - उदयगिरिका है जहां यह लेख है । भुवनेश्वर के निकट ये छोटे पहाड़ हैं ।
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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