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________________ महामेघवाहन महाराजा खारवेल २०३ वर्ष पश्चात् खारवेलने इसका पुनरुद्धार किया। अर्थात् २५६-११३८ १४३ (इ. स. पूर्व) खारवेलके राज्यका ११वां वर्ष होगा । इस प्रकार ई. स. पूर्व १५४ में खारवेलने राजदंड धारण किया होना चाहिये। अध्यापक लुडार्स ई. स. पूर्व २८० वर्ष पहिले खारवेलका समय मानते है।* (इस आलोचनाका अन्तिम भाग नहीं मिल सका। परन्तु इस प्रकारके ऐतिहासिक आधारोसे यह बात निर्विवाद सिद्ध होती है कि, ई. स. पूर्वकी शताब्दीमें कलिंगमें जैनधर्मका खूब प्रचार था और महा पराक्रमशाली चक्रवर्ती महाराजाओने भी यह धर्म स्वीकार किया था।) * यह लेख मूल वगला भाषामें लिखा जानेके पश्चात् शिलालेखके पाठ, अर्थ और अन्य प्रमाणोंके सम्बन्धमें पुरातत्त्ववेत्ताओंने बहुत अधिक मनोमन्थन किया है । यह सव वर्णन यहां नहीं दिया गया । इतिहासप्रेमियोंको “जैनसाहित्य संशोधक " भोर 'अनेकात की पुरानी जिन्हें देखनेकी प्रार्थना है। (गुजराती अनुवादक श्रीसुशील)
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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