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________________ महामेघवाहन महाराजा खारवेल २०१ है कि पाखंडी अर्थात् भिन्न भिन्न धर्मावलम्बी भी सतत खारखेलका गुणगान करते है। ___ महाराजा खारवेलने हस्तिसिंहके प्रपौत्र ललककी कन्यासे विवाह किया था। महारानी भी महाराजाके समान अत्यन्त धर्मपरायणा थीं। इन्होंने भी खारवेलके समान, जैन मुनियोके लिये गुफामन्दिर बनवाए थे। खारवेलके समयके सम्बन्धमें विद्वानोंमें मतभेद है। मगधराज अशोकके वाद खारवेल हुवा है, यह तो प्रिन्सेप आदि सभी मानते है । जूभो डूबेइलके मतानुसार ई. स. पू. १७० में खारवेल सिंहासनारूढ हुवा। भगवानलाल इन्द्रजी कहते है कि, मौर्य संवतके १६४ वर्ष पश्चात् खारवेलका यह शिलालेख खोदा गया होगा। ई. स. पू. २५६में अशोकने कलिंग देश पर विजय प्राप्त की थी। भगवानलालके कथनानुसार २५६-१६४=९२ (ई. स. पू.) खारवेलका समय होता है। उपरोक्त शिलालेखकी १६ वी पंक्तिमें आए हुवे "पनतनुशत........ .....राजा......रियल मछिनेन च चयप अगिसति कतिरियम् नपादछति" इन शब्दोंका संस्कृत अनुवाद भगवानलाल इन्द्रजी इस प्रकार करते है "विच्छिन्नेय चतुःषष्टिः अत्र शतकोत्तरे"=विच्छिन्नायाम् य चतुःषष्ट्याम् अत्र-शतकोत्तरायाम्" अर्थात् मौर्य राज्यके १६४ वर्ष वीत गए। ई. स. पूर्व २५६ वर्षको ये मौर्य संवत् मानते है। २५६-१६४=९२ (ई. स. पूर्व ) में महाराजा खारवेलके राजत्वका १३वां वर्ष मानें तो ९२+१३=१०५ (ई. स. पूर्व) में खारवेल कलिंगके राजसिंहासन पर बैठा, ऐसा कह सकते है।
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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