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________________ महामेघवाहन महाराजा खारवेल १९७ "... • तु [] जमलिखिलवरानि सिहरानि निवेसयति सतवेसिक्न परिहारेन । अभुतमछरिय च' हथिनावन परिपुर मवदेन हयहथीरतनामा] निक पण्डराजा चेदानी अनेकानि मुतमणिरतनानि अहरापयति इध सतो।" ___ " वाराणसीमें भी उसने पुष्कल स्वर्ण वितीर्ण किया....बहुतसे मूल्यवान रत्न दान दिये।" यह प्रिन्सेपकृत अर्थ है। "... ..सिनो वसीकरोति। तेरसमे च वसे सुपवतविजयचक कुमारीपवते मरिहते [य?] पखीणससितेहि कायनिसीदीयाय यापनावकेहि राजभितिनि चिनवतानि वसासितानि । पूजाय रतवास खारवेलसिरिना जीवदेहसिरिका परिखिता।" ___१३०० में उसने पर्वतविजयकी कन्याके साथ विवाह किया।" प्रिन्सेपके इस अर्थमें निम्न लिखित सुधार हुवा है "राजल्वके १३वे वर्षमें उसने कुमारी पर्वत पर एक स्तम्भ स्थापित किया और आहेत-निवासोका जीर्णोद्धार कराया।" ___ "......[सु] कतिसमणसुविहितान [नु!] च सतदिसानं [नु?] बानिन तपसि इसिन सघियन [नु] अरहतनिसीटिया समीपे पमारे वराकरसमुथपिताहि अनेकयोजनाहिताहि प. सि. ओ ..सिलाहि सिंहपथरानिसि [.] धुडाय निसयानि।" प्रिन्सेप इसका अर्थ न कर सका। आजकल पण्डित इसका अर्थ इस प्रकार करते है___"आहेत-निवासोंके पास रत्नखचित, चार खम्भोंवाले कामचलाऊ मकान भी वनवाए।"
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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