SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महामेघवाहन महाराजा खारवेल १९५ न कर सके । परन्तु आजकल पण्डित इसका कुछ और ही अर्थ कहते हैं: 'राजगृहका राजा मथुराकी ओर भाग गया । " (९) " कपरुखे हयग नरघसहयते सवघरावासपरिवसने सजगिगठिया । सवगहन च कारयितुं वम्हणान जाति परिहार ददाति । अरहतो.. व...न. .गिय " "कपि, गाय, अश्व, हाथी, भैस और घरकी अन्य उपयोगी वस्तुएं .... दुष्टों को निकाल बाहर करना... ब्राह्मण सेवकोंको दान किया । " यह, प्रिन्सेपका अर्थ है । अब इसका अर्थ इस प्रकार किया जाता है : “ राजत्वके नवम वर्षमें उसने ब्राह्मणोको खूब दान दिया । " (१०) ec '...क 1. मान [ति ] रा [ज] सनिवास महाविजय पासाद कारयति अठतिसाय सतसहसेहि । दसमे च वसे दडसघीसाममयो भरघवसपठानं महिजयन... ति कारापयति... (निरितय) उयातान च मनिरतना [नि ] उपलभते ।" " राजाने पंचदश विजयका महल बनवाया था । प्राचीन राजाओंक देशमें उसे कुछ गौरव न दिखलाई दिया ... उसने ईर्षा और मूर्खता फैली हुई देखी ।... १३०० में .... विचार करके ... "} खण्डित अक्षरोंका अर्थ बैठानेका यत्न करते हुवे भी प्रिन्सेपने इसका अधूरा ही अर्थ किया है। .... यह अर्थ होता है - “ उसने महाविजय महल बनवाया । सुवर्णका कल्पवृक्ष दानमें दिया । इस वृक्षके सब पत्ते सोनेके थे । ब्राह्मणोंको हाथी, घोड़े, सारथी सहित रथ अर्पण क्रिये । और भी बहुतसे दान किये । ब्राह्मणोंने खुशीसे स्वीकार किया । "
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy