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________________ महामेघवाहन महाराजा खारवेल १९३ (५) “ गधववेदयुधो दंपनतगीतवादितसन्दसनाहि उसवसमाजकारापनाहि च कीडापयति नगरि । तथा चवुये वसे विजाधराधिवास अहतपुव कालिंगपुवराजनिवेसित...वितधमकुल सविलमढिते च ..निस्वितछत-" ___ "वह पुण्यपरायण और गंधर्वविद्यामें भी सुनिपुण था। दंपन और तभत वजाता। सुन्दरी और हर्षदायिनी नागरीओंके साथ आनन्दमें समय विताता । और लोकव्यवस्थाके लिए उसने पूर्व कलिंगमेंसे विद्वान अर्हतोंको एक महासभामें आमन्त्रित किया था। इन सव आहेतोंको प्राचीन राजन्योंने बहुत दीर्घ कालसे वहां प्रतिष्ठित किया था।" यह प्रिन्सेपका किया हुवा अर्थ है। इस अर्थमें बादको कुछ सुधार किया गया है "वह गंधर्वविद्यामें बहुत निपुण था। राजत्वके तीसरे वर्षमें उसने अपने नृत्य गीत नाटय आदिसे नगरवासियोंको खूब आनन्दित किया था। कलिंगके पूर्ववर्ती राजा जिस धर्मस्थान (साधुनिवास)का पहिले बहुत मान करते थे, उसका उसने भी, राजत्वके चौथे वर्षमें बहुत सन्मान किया।" "भिंगारे हितरतनसापतेये सवरठिकमोजके पादे वदापयति । पंचमे च दानी वसे नन्दराजतिवससतओघाटितं तनसुलियबाटा पनाडि नगर पवेस[योति। सो .....भिसितो च राजसुय [य] सदशयतो सक्करवण." " फिर उसने दानपरवश होकर....नंदराजाके नष्ट एक सो घर.... और स्वयं वजपनादि नगरका सब कुछ ले लिया। इस सब टूटसे मिले हुवे मालको उसने पूर्वोक्त सत्कर्मों में व्यय किया।"
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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