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________________ १५२ जिनवाणी रहनेवाले मनुष्य भोगभूमिवासी कहलाते है। इनमेंसे कुछ वानराकार है तो कुछ अन्याकार है। इन्हें म्लेच्छ कहा गया है। मानव जातिके दो भाग हे : एक आर्य और दूसरा म्लेच्छ । आर्यखंडमें आर्योका निवास है। उनमें भी शक भील ऐसी जातियां हैं जो आर्य नहीं कहलाती । म्लेच्छ अधिकांशमें म्लेच्छ खंड और अन्तद्वीपोंमें निवास करते है। आर्योंके भी कई नेद हैं । जो पवित्र तीर्थक्षेत्रोंमें रहते है वे क्षेत्रार्य इक्ष्वाकु जैसे उत्तम कुलमें उत्पन्न होनेवाले जाल्यार्य, वाणिज्यादिसे आजीविका चलानेवाले सावयकर्माय; जो गृहस्थी है, सयमासंयमधारी श्रावक हैं वे अल्पसावद्यकर्माय, पूर्ण संयमी साधु असावद्यकर्मायः पवित्र चारित्रका पालन करके मोक्ष मार्गकी आराधना करनेवाले चारित्राय जो सम्यग्दर्शनके अधिकारी है वे दर्शनार्य कहलाते है। इनके अतिरिक बुद्धि, क्रिया, तप, वल, औषध, रस, क्षेत्र और विक्रिया इन आठ विषयों संबन्धी ऋद्धिवाले भी आर्य है। मध्यलोकमें बहुतसी कर्मभूमियां तथा भोगभूमियां हैं। जहां राज्यत्व, वाणिज्य, कृषिकर्म, अध्ययन, अध्यापन और सेवा आदि के द्वारा आजीविका प्राप्त की जाती है वह कर्मभूमि कहलाती है। जहां संसार-त्याग सम्भव है वह भी कर्मभूमि है। दूसरे शब्दोंमें, जहां पुण्यपापके उदयके कारण जीव कर्मलिस होता हो वह कर्मभूमि है । भोगभूाममें यह बन्धन नहीं है । सब मिलाकर १७० कर्मभूमि है। उनमेसे जंबूद्वीपमें भरत और ऐरावत ये दो; बत्तीस विदेहक्षेत्रमें; ६८ धातकी
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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