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________________ १४ साहित्यमें जो अनन्य रुचि रखते हैं वह नवयुगकी जिज्ञासाका जीवित प्रमाण है । उन्होंने 'रत्नाकरावतारिका' का अंग्रेजी अनुवाद किया है। उनकी इच्छा थी कि उसकी जांच करके छपा दिया जाए । मेरेमें उस समय इतनी योग्यता नहीं थी कि अंग्रेजी अनुवादको स्वयं देखकर कुछ कह सकता, अत एव उसे देखनेका काम मैने अपने एक तत्कालीन ग्रेज्युएट साथी (सत्याग्रहाश्रमवासी श्री. रमणिकलाल मगनलाल मोदी)को दिया, जो इस समय जेलमें है । वह अंग्रेजी अनुवाद हम छपा तो न सके, परन्तु उसे देखकर हमें इतना तो विश्वास हो गया कि भट्टाचार्यजीने इस अनुवादमें बहुत परिश्रम किया है; और उससे उन्हे जैन शास्त्रके अन्तस्तल तक पहुंचनेका अच्छा अवसर मिला है। उसके बाद, इतने वर्ष बीत जाने पर, जब मैने उनके वंगला लेखोंका अनुवाद पढ़ा तो भट्टाचार्यजीके विषयकी मेरी तत्कालीन धारणा पुष्ट हो गई और -वह सत्य भी सिद्ध हुई । श्रीयुत् भट्टाचार्यजीने जैन शास्त्रका अध्ययन और अनुशीलन दीर्घ काल तक जारी रखा। ये लेख उसीके फलस्वरूप कहे जा सकते हैं । जन्म और वातावरणसे जैनेतर होते हुवे भी, उनके लेखोंमें जो अनेकविध जैन विषयोंकी यथार्थ जानकारी है और जैन विचारसरणीका जो वास्तविक स्पर्श है वह उनकी अध्ययनशीलता और सावधान बुद्धिको सिद्ध करते है। पूर्वीय तथा पश्चिमीय तत्त्वचिंतनका 'विशाल अध्ययन इनकी एम. ए. (और पीएच. डी.) की डिगरीको शोमा दे ऐसा है। इनका तर्कयुक्त निरूपण, इनकी वकील-बुद्धिकी साक्षी है। भट्टाचार्यजीकी यह सेवा, केवल जैन समाजमें ही नहीं अपितु जैन दर्शनके जिज्ञासु जैनेतर साधारण जगतमें भा चिरस्मरणीय रहेगी।
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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