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________________ जीव १४३ L ओर केवल ४ श्रेणी विमान होते है। जिस प्रकार इन्द्र विमानके चारों ओर श्रेणीबद्ध विमान होते हैं उसी प्रकार उसकी विदिशाओं में भी प्रकीर्णक अथवा पुष्प प्रकीर्णक विमान होते हैं । ६३ वें पटलमें प्रकीर्णक विमान नहीं हैं। वहां मध्य भागमें सर्वार्थसिद्धि नामक इन्द्रक विमान और उसके आसपास विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित नामक चार श्रेणीबद्ध विमान हैं । देवोंके भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक ऐसे चार भेद हैं यह हम जान चुके हैं। ये चार भाग दस भागो में विभक्त हैं। (१) इंद्र, (२) सामानिक, (३) त्रायस्त्रिंग, (४) पारिपद, (५) आत्मरक्ष, (६) लोकपाल, (७) अनीक, (८) प्रकीर्णक, (९) किल्बिपिक और (१०) आभियोग्य । भवनवासी और व्यंतर देवोंमें त्रायस्त्रिश और लोकपाल जैसे भेद नहीं है । उपरोक्त दस भेद ज्योतिष्क और कल्पोपपन्न वैमानि - कोंमें ही होते है । कल्पातीत देवोंमें कोई खास भेद नहीं होता, क्यों कि वे सब इन्द्र है और इसी लिए कल्पातीत वैमानिक 'अहमिन्द्र ' कहलाते है । देवोमें जो राजा, बड़े होते हैं वे इन्द्र है । सामानिक देवोंके भोगोपभोग इन्द्रके समान ही होते है, केवल इतना अन्तर होता है कि इन्द्रके आधीन सेना होती है, आज्ञाकारी सेवक होते हैं और राज्यऐश्वर्य होता है । सामानिक देवोंके पास यह कुछ नहीं होता । इन्द्रके ३३. मंत्री अथवा पुरोहित होते है । वे त्रायलिंग नामसे पुकारे जाते हैं । इन्द्रसभा सभासद पारिषद कहलाते है । इन्द्रके भी शरीररक्षक देव होते है । लोकपाल उसके राज्यकी रक्षा करते हैं । इन्द्रके 1 सैनिक अनीकदेव कहलाते है । सेवक देवोंको आभियोग्य और नीची
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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