SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निदर्शन (लेखक : पण्डित श्री सुखलालजी संघवी) बुजुर्गोंने रखे हुवे नाम 'भीम'को गौण करके स्वयं अपना 'सुशील' नाम रखने और उसे गुणनिष्पन्न सिद्ध करनेवाले भाई सुशील वाचक और विचारक जैन जनतासे शायद ही अपरिचित है। बहुत वर्ष पूर्व हम दोनों काशीमें एक साथ भी रह चुके है। उसके पश्चात् भी हमारा परिचय जारी रहा है। भाई सुशीलने प्रस्तुत लेखोको पढ़कर उनके विषयमें कुछ लिखनेके लिये जब मुझसे कहा तो मुझे एक प्रकारसे बडा आन्तरिक संतोष प्राप्त हुवा; वह यह समझकर कि, भाई सुशीलके हृदयमें मेरा सादर स्थान होना चाहिये, और योग्य लेखकके समुचित लेख पढकर उनके विषयमें कुछ लिखनेका अवसर भी मिल रहा है। इस सन्तोषकी प्रेरणासे मैने कुछ लिखना स्वीकार कर लिया। ये सव लेख पूर्णतः ध्यानपूर्वक सुनने पर उनका मेरे हृदय पर जो प्रभाव पड़ा है वह संक्षेपतः यहां व्यक्त कर रहा हूं। इन लेखोंके विषयमें कुछ लिखनेसे पूर्व अनुवादक और मूल लेखकके विषयमें भी कुछ संकेतरूपसे लिखना उचित ज्ञात होता है। भाई सुशील मूल बंगला लेखोके अनुवादक हैं। उनका बंगला भाषा विषयक ज्ञान कितना दृढ है, इस बातकी जिन्हें और तरहसे खबर नहीं है वे केवल इन लेखोंको पढ़कर भी इसे भली भांति जान सकेंगे। इन गुजराती अनुवादोको पढनेवालेको यह कल्पना तो शायद ही हो कि यह अनुवाद है। इस सफलताका कारण केवल बंगला भाषाका यथेष्ट ज्ञान ही नहीं है। सिर्फ सम्पादकीय लेखके
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy