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________________ ( a जिनवाणी संबन्धमें अधिक-विशेष जाननेकी स्पृहाका नाम ईहा है । अर्थात् अवग्रहीत विषयके प्रणिधान Perceptual attention (विचारणा)को ईहा कहते है। अवाय यह परिपूर्ण इन्द्रियज्ञानकी तीसरी भूमिका है। ईहित विषयके संवन्धमें सविशेष ज्ञानका नाम अवाय है । इसे Perceptual determination (निर्धार) कह सकते है। धारणा धारणा इन्द्रिय ज्ञानके विषयको स्थितिशील करती है । इसे Perceptual retention कह सकते है। धारणाकी भूमिका ही इन्द्रियज्ञानकी परिपूर्णता है। ___अवग्रह आदिके और भी बहुतसे सूदम भेद है, परन्तु विस्तार हो जाय या विषय क्लिष्ट हो जाय इस भयसे उन्हें छोड़ दिया गया है। विद्वज्जन इतने ही से यह बात समझ सकते है कि आधुनिक युरोपीय विद्वानोंने Perception के विकासका जो क्रम बतलाया है उसका विवरण जैन पण्डितोंने पहिले ही से शुद्ध मतिज्ञानके प्रकरणमें कर दिया है। स्मृति मतिज्ञानके दूसरे प्रकारका नाम स्मृति है । इससे इन्द्रियज्ञानके विषयका स्मरण होता है । स्मृतिको पाश्चात्य वैज्ञानिक Recollection अथवा Recognition कहते है। Hobbes के मतानुसार तो
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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