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________________ ८४ जिनवाणी कर्ता है | बौद्ध जिसे विज्ञानप्रवाह कहते हैं, जीवतत्व वह भी नहीं 1 है, क्यों कि जीव· सत्, सत्य और नित्य पदार्थ हैं । जैन दर्शनमें जीवके अस्तित्व, चेतना, उपयोग, प्रभुत्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व, देहपरिमाणत्व और अमूर्तत्व आदि गुणों का वर्णन है । प्राणविद्या प्राचीन जैनोंने जो जीवविचारका उपदेश किया है उसमें Biology विषयक आधुनिक खोजका पूर्वाभास भली भांति पाया. जाता है । जैन पृथ्वी, जल, अग्नि और बायुमें सूक्ष्म - एकेद्रिय जीवोंका - अस्तित्व मानते है । इस सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवपुञ्जको आज वैज्ञानिक - प्राणितत्त्ववेत्ता Microspic organisms कहते हैं । जैन वनस्पतिकायको एकेन्द्रिय जीव मानते हैं । वनस्पतिमें भी प्राण हैं, स्पर्शका अनुभव करनेकी शक्ति है, यह भी वे कहते हैं । इस आधुनिक युगमें आचार्य जगदीशचन्द्र बसुने वनस्पतिशास्त्र सम्बन्धी जो नवीन अनुसन्धान करके आश्चर्य फैला दिया है उसका मूल वस्तुतः इस एकेद्रिय जीववादमें छुपा हुआ था । आत्मविद्या - जीवतत्त्वके समान ही जैनप्ररूपित आत्मविद्या – Psychology बहुतसे आधुनिक अन्वेषणोंका आभास पाया जाता है। जीवके गुणोंकी गणनामें हमने 'चेतना' और 'उपयोग 'का उल्लेख किया है । यहां इन मुख्य गुणोंके, विषय में विशेष विचार करना है । चेतना - चेतना, तीन तरहसे, होती है- कर्म फलानुभूति, कार्यानुभूति और
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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