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________________ संक्षेपमें[गुजराती संस्करणमें लिखित भूमिका} "जिनवाणी" नामक बंगला मासिक पत्रसे अनुवादित ये लेख यथावकाश क्रमशः गुजराती मासिक पत्रमें प्रकाशित हो रहे थे। -दोःतीन लेख प्रकाशित होनेके पश्चात् ऊंझा-निवासी वैद्यराज नगीनदास छगनलाल शाहका ध्यान इस ओर आकर्षित हुवा और उन्होंने सन्देशा भेजा " ये लेख पुस्तकाकार प्रकाशित हो तो विद्वानोंके हाथमें संग्रहके रूपमें पहुंच सके।" -~~-संक्षेपमें इस पुस्तककी यह जन्मकथा है । -इन लेखोके मूल लेखक श्रीयुत् हरिसत्य भट्टाचार्यजी है। वे जैनशास्त्र-साहित्यके पारंगत होनेका दावा नहीं करते । उन्होंने ये लेख जैनशास्त्र-सिद्धान्तोक अभ्यासी होनेके नाते ही लिखे हैं। एक जैनेतरके यथाशक्य सावधानी रखते हुए भी क्वचित् भ्रम होना सम्भव है। इने लेखोंमें कहीं ऐसा हुवा है या नहीं यह मै नहीं कह सकता । __ - श्री. भट्टाचार्यजीने जिन ग्रन्थोंका अध्ययन किया है उनके अनुसार पाठभेद हो, या ये लेख कई वर्ष पहिलेके लिखे हुवे होनेके कारण इनमें, अभी हालहीमें ज्ञात होनेवाले ऐतिहासिक विवरण न हो तो यह एक स्वाभाविक बात है। --उन्हें जैन दर्शनमें कितनी श्रद्धा है, कितना मान है, यह बात तो इन लेखोंकी एक एक पंक्ति कह रही है। ~~-इनका तुलनात्मक अध्ययन एवं धाराप्रवाही लेखनशलीको देखकर तो किसी भी जैन या जैनेतरके हृदयमें इनके लिये सम्मान उत्पन्न हुवे विना नहीं रह सकता। मी हा लेख कई वर्ष वययन किया है। हो तो यह
SR No.010383
Book TitleJinavani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1952
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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