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________________ [ ५३६ ] वोलत वोलन आवत मो पे कपाट रिदा विच ते जुटीया रे, राजमती जसराज यदुप्पति देखाम कॅ तरसे अखिया रे।। ११ ।। प्रगटे नभ वादर आदर होत धनाधन आगम आली भयो है, काम की वेदन मोहि सतावै आसाढ़ मे नेमि वियोग दयो है। राजुल संयम लेके मुगति गई निज कत मनाइ लया है, जोर के हाथ कहै जसराज नेमीसर माहिव सिद्ध जयो है ।। १२ ।। इति नेमिनाथ राजीमती बारैमास रा सवेंया संपूर्ण संवत् १८२० ग वर्प श्रावण बदि १४ [ प्रति-जैन भवन, कलकत्ता हीयाली गीत परम परवीत अणजीत निर्मल बिहु पखे, सयल संसार जस वास सारइ पुर इक मउज महिराणहर पालगर, वाट घणघाट दुख दाह वारइ ॥१॥ वदन जसु आठ दुनीया न सहुको वढइ, रमणदस पाच ताइप्रगट रानइ दोइ पग जासु दीसइ सदा दीपता, भेटता भूख भइ दूख भाजइ ॥२॥ चपल दृग भालीयल सोल वारू चवा, जुगल कर जीव सुर सेव सारइ।। सुगुण जिनहरष ची वीनती साभल उ, धींग नर नारि चउनाम धारइ।।३।। गूढ प्रहेलिका पढमक्खर विण सरवर सुहावे सहु जणा मझक्खर विण किणही सुहावं नहि भणा अतक्खर विण आगम कहै सयणा तणो परिहा कहै कुमरी जिनहर्प वाचौ सुणौ ।।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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