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________________ गजसुकमाल मुनि सज्झाय रिद्धि तजी ततकाल, रमणी रूप उदार ॥ च०२ ॥ आविया गहगट थाट सुं, श्री नेमिनाथ समीप । करजोड़ कीधी वंदना, जय भवसायर दीप || १०३ ॥ ए सचित्त भिख्या प्रभु ग्रहो, ए कुमर गजसुकमाल । एहनें तुमे दीक्षा दीयो, टालो भवदह जाल ॥ च०४ ॥ जगनाथ हाथ पसार नें, कीधो अंगीकार । श्री साधुनो धरम आपीयो, चउ महाव्रत सार ||१०५|| माता पिता पगे लागी ने, सहु गया निज-निज गेह । मन थकी तोहि न वीसरे, नवलो एह सनेह ॥ ०६ ॥ हिवें पंच मुठि लोच करें, प्रभु आय लागो पाय । किम करस तूटे माहरा, सो दाखवो महाराय || व०७ || जगनाथ 'नेमीसर कह्यो, समसाण कर काउसग | मन क्रोध तजि आदर क्षमा, आया खमो उपसर्ग व ०८ || कर तहत गजसुकमाल चित्ते, आवियो तिहां समसाण | काउसग कर ऊभो रह्यो, रहतां निरमल झाण ॥ ०६ ॥ निरखियो सोमल ब्राह्मण, जागियो क्रोध प्रचंड | माहरी कन्या छोड़ नें, ए पापी थयो मुझ (दंड) ।। ०१० ॥ सर थकी माटी आणी ने, तसु सीस बांधी पाल । चलता अंगारा मेल्हिया, मुख थी देता गाल ॥ च०११ ॥ रे जीव सहि तं वेदना, मन मांहि नाणिस रोस । भोगव्या. विगर न छूटका, किण ने देह सिर दोष | | ०-१२ || ५१७
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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