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________________ नव वाहिनी समाय कामणगारी कामिनी, जीतो सयल संसार । आखै अणी न क्यो रहोथो, सुरनर गया सहु हार ||४७|| हाथ पांव छेद्या हुवै, कान नाक पिण तेह | ते पण सो वरसां तणी हो, ब्रह्मचारी तजे जेह ||४८|| रूपै रंभा सारखी, मीठा वोली नारि । ते किम जोवे एहवी हो, भर जोवन व्रत धार || ४६ || अबला - इंन्द्री जोवतां, मन थायै वसि प्रेम । राजमती देखी करी, हो तुरत डिग्यो रहनेम ||५०|| रूप कूप देखी करी, मांहि पड़े कामंध । दुख मांगे जांण नहीं हो, कहै जिनहर्ष प्रबंध ॥ ५१ ॥ ५०३ ** दूहा संयोगी पास रहै, ब्रह्मचारी निशदीस | कुशल न तेहना व्रत तणी, भाजे विशवा वीस || ५२ || चसे नहीं कूट अंतरे, शील तणी हुवे हाणि । ' मन चंचल बसि राखिवा, हियै धरो जिन वांणि ॥ ५३ ॥ | ढाल || श्री चंद्राप्रभु प्राणो रे || वाडि हिवे सुणि पांचमी रे, शील तणी रखवाल रे । चक्षु रो पड सीतो शही रे, व्रत थासी विशटाल रे ॥५४॥ परियछ भने रे रे, नारि रहे जिहां रात रे । केल करे निज कंतसं रे, विरह मरोडे गात रे ||५|| कोयल जिम कुहु केलवे रे, गावै मधुरे शाद रे । '
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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