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________________ ४६२ जिनहर्ष ग्रन्थावली सीता महासती स्वाध्याय ढाल | रमीयानी ॥ धीज करे पावक नउ जानकी, पइसइ अगनिकुंड मांहि । मोरा रसिया। निज प्रीतम ने कहे इम पदमिणी, चालड जोया रे जांहितामोश्वी।। लां पहुलं कुंड खणावीयड, पांचसे धनुप रे मान । मो। झालो झाल मिली पावक तणी, फूल्या जाणे केस समोन मोरधी नगर अयोध्या वासी सहु मिल्या, मिलिया रावतरे राण मो। कौतक जोवा आव्या देवता, रथ थंभी रह्यउ रे भाण ||मोश्धी।। लक्ष्मण राम आच्या परिवार सं, सीता करी रे स्नान । मो। आवी कुंड समीपे मल्हपति, करी शृंगार प्रधान मोठ्धी नर नारी सहु को सुणिज्यो तुम्हे, माहरे किणि सं रे लाग मो। राघवविणि कोइ चित्तधर्यउ हुवे, तउ वालेज्योरे आगिमोधी।। इम कही पडूठी पावककुंड मां, पावक पाणीरे होइ । मो । हंसतणी परि तिहां क्रीडा करे, हरपित थया सहु कोइ ।मोधी।। नीर प्रवाह चल्यउ जग रेलिवा, सीता मारी रे हाक । मो। सील प्रभावे जल बल उपसम्यउ, सतीयई राख्यं रेनाकामोधी।। फूल तणी सिरि वृष्टि सुरे करी, धन-धन सीता रे नारि मो। सहु सतीयां माहे मोटी सती, एहनउ धन्य अवतार मोटधी।। निः कलंकित थई ने व्रत आदर्य, राख्यं जगमां रे नाम । मो। चारित्रपाली सुरपति पद लघु, करे जिनहरख प्रणाम॥मोत्धी।।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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