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________________ चिलातीपुत्र स्वाध्याय ४४४ तउ मुजने लेवा नहीं हुवारी, चाल्यो परठण काज रे हुलाला ईट नीवाहइंजाइनै हुंचारी, चूरे करम समाज रे हुलालाढl आवी निर्मल भावना हुंवारी, पाम्युं केवलनाणरे हुवारीलाला ढढणरिषि मुगतई गया हुवारी, कहे जिनहरख सुजाणरे हुवारी लाल ॥६ ढं। चिलातीपुत्र स्वाध्याय ढाल १ जिरे जिरे सामि समोसर्या ॥ __ साधु चिलातीपुत्र गाईयइ, तोड्यां जिणि करम कठोरो रे। • तास चरण निति प्रणमीये, सह्यां जिणि उपसर्ग घोरा ।।१सा।। राजगृह पुर "रलीयामणउ, अलिकापुरि अवतारो रे। धन सारथवाह तिहां वसइ, धनवंतमां सिरदारो रे ॥२॥ दासी चिलाती छड् तेहने, चिलातीपुत्र थयउ जाणो रे। सेठि नइ पांच छइ दीकरा, कन्या एक निहाणोरे ॥ ३सा ॥ रूप तु अपछरा सारिखी, रति सरसति अनुहारौ रे । वाल्ही माय-बापने अति घj, भाईने जीव आधारो रे ॥४ सा।। अनुक्रमि दास मोटउ थयउ, (करे) घरमां अन्यायोरे । लोकनाल्यावइ ओलंभडा, काट्यउ घरथी कर साह्यो रे॥५सा॥ चोरः पल्ली माहे जइ रह्यउ, पल्लीपति तसुदेसी रे। पुत्रकरी तिणि राखीयउ, आपद तास नवेसी रे॥६ सा॥ १७ आई
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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