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________________ जिनहर्ष ग्रंथावली 'ढाल-आख्यातनी श्री कृष्ण भाखड़ धर्मसुत सुणि, प्रथम एह विचार रे । सत्वहीण थास्यइ नारि नर, कलिजुगइ तुं अवधारि रे। मात पिता दुख भूख पीड्या, नहीं कोई आधार रे। धनवंत नइ निज सुता देई, तास द्रव्य आहार रे।--२० जिम गाय धावइ वाछड़ीनइ, बात उलटी इस हुस्यइ । . धन दीकरी नउ भक्ष करिस्यइ, लोक नीति न चालिस्यइ । 'तई सरोवर तीन दीठा, तास सुणि विरतंत रे। प्रथमनउ जल ऊछलीनइ, अंत माहि पडत रे ।-२१ जे राउ छइ विचइ सरवर, बूंद न पड़इ एक रे। कलिजुगइ थास्यइ लोक एहवा, नहीं लाज विवेक रे। . जे सगा अनइ निजीक चाल्हा, आविस्यइ नहीं काम रे। ते सोथि करिस्यइ वैर बांधा, निकटवासी धाम रे ।-२२ ज साथि सगपण नहीं किमही, वसइ अलगा जेह रे।। बहु प्रीति करिस्यइ ते संघातइ, मान लहिस्यइ तेह रे। ' दोरड़उ वेलू तणौ भागी, जतन करतां जाइ रे। -कलिकाल भाव तणा फल, श्रीपतिकहइ सुणि राय रे ।-२३ कृष्णादिका वहु क्लेश संयुत, लोक धन ऊपाविस्यइ । ते अगनि चोर जलादि कारण, राजा डंड पंजाविस्यइ। बहु जतन करिनइ राखिसइ धन, तउ ही पिण रहिसइ नहीं। 'वन अलप आय उपाय बहु, व्यय, आवाह फल सांभलि सही २४
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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