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________________ ४४० जिनहर्ष प्रथावली १ चल्यौ लेइ कलत्र, मित्र ज्यं विकसइ कलीयां । तिण ठोड़ि आय रथ थंभीयौ, भुवन जाइ सिर कापीयउ । तिहां गयौ मरण देखे तुरत, मित्र तासु तिमहिज कीयौ-१५ अजी न आया केस, तिका कामणि तिहां पहुती। पेखि मरण एहवौ, मरै देवी मां कहती। तौ ए करि सरजीत, सीस धड़ मेल्हि निचंता। तिण मेल्हा जूजूया, हुआ जीवता विता। कहि दीप नारि ते केहनी, धड़ वनिता राजन लहइ । जिनहरष रीस करि सीसरी, कामणि चौवोली कहै-१६ अथ चउथइ पहुर हार बोलायौ । ॥ दुहा ॥ आयो दक्षण देश थी, उलगाणौ वर वीर । वर्द्ध मानपुर वर प्रसिद्ध, वीरसेन नृप धीर-१७ कवित्त . . वर्द्धमानपुर वड़ौ, नाम वीरसेण नरेसर । दक्षण थी आवीयौ, एक रजपूत वीरवर । राइ कहइ किन काम, सेव कजि साहिव आयौ । . . रोजगारा की, लेसि, सहस दीनार - दिवायौ । असवार किता सुत नारि हुं, रावति पुरपति राखीयउ। . निसि नारि काइ रोती सुणी, भूप जागि इम भाखीयौ-१८ कोइ जागै पाहरू, तरइ वर -वीर हूंकारइ । . .
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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