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________________ ४१८ जिनहर्ष ग्रंथावली सिरज्या सिरजणहार, जग माहै दुःख हो जसा ॥१०॥ माजनिया सावास, वेठो वीसारे मना । विरुइ वात विमास, उचा बोली आदरी ।।१०।। नानक मेह, जतन करतां ही जसा । .."लियो ऊअर छासि, ऊतरि जाये आफणे ॥१०२।। प्रीति करह पतिसाह, पतिसाहां री। विरला पावे वाह, कायर की जाणे जसा ॥१०॥ ओछो अधिको होइ, जपीवो अणगमतो जसा । साजण समजो मोहि, मन मंड रीस न आणज्यो॥१०॥ प्रेम सहित लिखि पत्र, समाचार संदेसड़ा। मोकल देज्यो मित्त, [हेतू] माणस सं जसा ।।१०शा तन ती तजि.धेख, मो कहियो हित मानियो।। लिखजो साजन लेख, जुगति थी जि हुसी जसा ॥१०६॥ . ॥ इति श्री प्रेम-पत्रिका दूहा संपूर्ण ॥ फुटकर दोहे चित चितै कांई बात, करणीगर काई करै। अघटित अवली धात, नर कोई न लखे जसा ॥१॥ सुगण न कीधा फूटरा, निरगुण रूप अथाग। जगदीसर जसराज है, दांतां पाड़न भाग ॥२॥ साजन मिलियां सुख हुवै, चैन हुवै चित माय । हिवड़े हरख हुवै जसा, दिन सुकियारथ · जाय ॥३॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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