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________________ 'थूलभद्र चउमासा ३६१ म्हारी आँखंडिया उमाहो, · निसंदिन जोतीयां ॥१॥ सो० ऊभी वेकर जोड़ कोस्या प्रिय आगलै, सो० मुझ सफली कर अरदास, मनोरथ ज्यं फलै। सो० थे तो महिला आयो आज, कठिण चित क्यं थया । म्हारी पूरो बंछित आस, करौ मुझ सुं: मया ॥२॥ सो० थूलभद्र कहै सुणि कोस्या बात सुहामणी, दे चौमास रहेवा थानिक मुझ भणी, सो० .:. ... ... ... ... ... ... .. ए चित्रसाली गोख सुरंगी जालियां ॥३॥ सो० मुझ सं साढा तीन रहे कर... वेगली, . लेई वोल अमोल रह्यां तिहां मन रली, पटरस भोजन सरस सदाई तिहाँ करे. जोवन रूप अनूप विन्हेई इण परे ॥४॥ आयौ पावस मासक 'अम्बर गाजियौ, ऊमट आयौ इंदक मेहा राजियौ, . काली कांठल मांहि क झबूकै वीजली, " वाहे वेहुँ पसारि मिलं पूजै रली ॥१॥ थारां भीभलीयां नैणा रा जाउं वारणे, : - मैं तो कीधा सहु सिणगार, तम्हीण कारणै । __ तुं तो आधों ही हठ छोड़, हठीला नाहला ॥६॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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