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________________ श्री थूलभद्र वारहमास ३८५ थूलभद्र गुरुनी आगन्या लेई, आवीया कोस्या परे । चउमासि करिवा निरखि हरखी, सफल दिन थयउ आजरे ॥६॥ मास श्रावण चित्रसाली, मुनि रह्या चउमासि रे। सुचि नीर भंजन कंत रंजन, चीर पहिर्या सासि रे ।। निलवट्ट तिलक वनाइ केसर, नेत्र काजल अंजीया । रवि तेज मंडल कान कुंडल, कनक सीका मंजीया ।। क्रनक नथ मोती मुकर जोती, पानवीडा चावती। कोटइंत पहिर्या हार सुंदर, कनकमाला फावती ।। झूमणउ पारा हार तूसी, चाक भ्रमर सीसफूल रे। फमतउ सोहइ सीस वेणी, घूमतउ बहु मूल रे ॥ . कर चूड़ि खलकइ कनक फेरी, कांकणे कर सोहतउ । बहिरखा वींटी गूजरी, अंगूठडी मन (मन) मोहतउ । चरणेत जेहड वीछीया, अण वट्ट पहिरि पटउलडी। अतलस्स चरणउ पंच पयनी, कांचली उरसुं जडी ॥ सिणगार सोलह सज्या सुंदरी, मदन माती मानिनी । थूलभद्र आगलि आचि बइठी, चतुर चित चंद्राननी ॥१०॥ ' भावे गाज आवाज करि ने, आवीयउ जलधार रे। घन घटा घोर अन्धार चिहुँदिसि, वहइ नीर आधार रे ।। चमकंत चपला डरूं अवला, कंत मेलउ आपि रे। मुझ प्राण जाता राखि कंता, विरहिणी दुख कापि रे॥ बापीयडा पीउ पीउ करे पीउ, सांभरे मुझ राति रे ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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