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________________ ३८४ जिनहर्ष ग्रंथावली तुझ विनती हूं करूं प्रीतम, राखि रूडउ रंग रे || मुझ देह कोमल कमल दल सम, कठिन वाले हीम रे । मुझ प्राण थास्ये पाहुणा प्रिउ, क्रूड कहु तउ नीम रे । इणि टाढ महं किम गाढ़ कीजे, रंग रमीये सेज रे । हेज रे ॥ ३ ॥ हरख मिलीये थूलभद्र कोशा कहे नारी, माह मासें कां नासे, राखि पासे नारि रे । करि कठिन हीयड़ गयउ पीयडर, करू कासि पुकार रे ।। इणि कारिमी करि प्रीति प्रीतम, लोयउ मुझ चित चोर रे । पिणि हनउचित किमि न भीनउ, जाणि पाहण कोर रे || हु जाणती ए कंत मोरङ, एहनीं हूं नारि रे । पिणि इणि धूतारे मुझ धृती, मै न जाणी सार रे ॥ प्रथम पहिली जाणती जउ, प्रीति थी दुख हो रे । तउ नगर पडहउ फेरती, मत प्रीति करिज्यो कोइ रे || मन ऊपरिलो प्रीति कीधी, माहि कठिण कठोर रे । दीसत सुंदर वदन हसतउ, जिसन पाकुं बोर रे ॥ ४ ॥ मा फागुण फरह सखी, नारी नर उछाह रे । हु फाग किणि सुं रमुं सहीयां, अजी नायउ नाह रे ॥ संयोगिणी मिलि कंत साथइ, रमइ लाल गुलाल रे । राता गाल रे || चंपेल तेल फूलेल मेली, करड़ भला चंग मृदंग वाजे, गीत करड़ क्रीडा तजी व्रीडा, जल तणी सुविसाल रे || राग धमाल रे ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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