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________________ ३८२ जिनहर्प प्रथावली पिणि काया नवि पालवी, निति सूकंती जाइ ।।सा१०की। कोइल करड् टहकड़ा, आत्यउ मास वैसाख ।स। मउर्या तरुअर आंबला, मउरी वन-वन द्राख ॥सा१२को।। जेठ तपइ अति आकरउ, दाझइ मोरी देह ।सा। मांखण जिम तन परघलइ, टाढउ करि धरि नेह ॥सा१२को।। आसाइ प्रिउ आवीया, आव्यं पावस देखि ।सा। मन नी माझ सफली थई, पाय लागी सुविसेस ॥सा१३को।। भले पधार्या नाहलीया, पूरेवा मुझ आस ।सा। संभारी दिवसे घण, राखउ हिवे प्रिय पास ॥सा१४को।। चित्रसाली मुनिवर रह्या, कोसि करइ हावभाव ।सा। पिणि लागा नही मुनि भणी, काम वचन ना घाव ॥सा१५को।। कोस्या वेस्या मंदिरे, करि थूलिभद्र चउमास ।सा। प्रतिबोधि सुर सुख लह्या, गुण जिनहरख प्रकाश सा१६को।। श्री थूलभद्र वारहमास ढाल ॥ पाख्यान नी ।। प्रथम प्रणमुं मात सरसत, चरण पंकज दोय रे । प्रह ऊठि सेवं भाव आणी, बुद्धि निर्मल होइ रे ॥ जे ज्ञानि हीणा देह खीणा, रहइ दीणा जेह रे। . सुपसाय माय तणइ नीरोगी, थाय पंडित तेह रे ।। वाणी विसाला अति रसाला, मात द्यउ सरसत्ति रे। हुं गाइसुं रिपि बारमासउ, थुलिभद्र मुनिपत्ति रे॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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