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________________ ३७८ जिनहर्प ग्रंथावली पडत राजगृह नयरइ सिव पहुंता, पाम्या सुख अपार री माई। कहे जिनहरख नमुं चितलाइ, श्री सोहम गणधार री माई।वी।। श्री इग्यारे गणधर स्वाध्याय ढाल ॥ प्रभु नरक पडतउ राखीयइ || एहनी __ गणधर इग्यारे गाइये, श्री वीर तणा मुख्य सीस रे । जहने नामइ सहु सुख लहीये, पूजे सयल जगीस रे ॥१ग।। श्री इंद्रभूति पहिलउ भलउ, गौतम गोत्र पवित्र रे । वीजउ अग्निभूति प्रणमीजे, जीव सहूना मित्र रे॥रगा। वायुभूति जीजउ गणधारी, त्रिणे भाई एह रे। . चउथउ व्यक्त चतुर्गति छेदे, धरिये तेहसुं नेहरे ॥३गा। श्री सुधर्म पंचम गति दायक, चीर तणउ पटधार रे। मंडित छठे गणधर कहीये, पाम्यउ भवनर पार रे॥४गा। सातमउ मोरीपुत्र कहीजे, श्रुतज्ञानी सिरदार रे । वीर सीप आठमउ अकंपित, करुणा रस भंडार रे ॥गा। नवमुं अचलभ्राता स्वामो, त्राता जीव निकाय रे। . मेतारज ; दसमउ गण नायक, सुर नर प्रणमे पाय रे॥६ग।। श्री प्रभास इग्यारमउ प्रणमं, गणधारी गुणवंत रे । वीर तणा इग्यारे गणधर, प्रहसम जेह जपंत रे ॥७गा. तेह तणइ घर आंगण निवसे, कामधेनु सुरवृक्ष रे। आपे सुख जिनहरख मुगतिना, ध्यावे जे परतक्ष रे॥८गा।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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