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________________ ३६० जिनहर्ष प्रथावली आदि नमो अरिहंत, सिद्ध वीजइ पद साचा । आचारज आचार, पंच चाले सुध वाचा ।। उत्तम श्री उवझाय, वार जे अंग वखाणइ । अढी दीप अणगार जिके, निज किरीया जाणइ ।। परमेष्टि पंच जपतां प्रलइ-जाइ पाप जूआ जूअइ । जिनहरख पत्र परिवार जस, सुख संपति मंगल हुअइ ॥४॥ इणि नवकार प्रभाव हुअउ, धरणिंद सहु जाणे । सिवकुमार सौचन्न पुरुष, पाम्यउ तिणि टोणइ ॥ सती श्रीमती साप मिटे, हुई पुष्पमाला । संबल कंवल सांड वसे, विम्माण विसाला ॥ भीलडी भील नृप सुख लहे, देव हुआ सहु दुख गयउ । जिनहरख पार न लहुं सुजस, श्रीनवकार चिरंजयउ ॥शा आदि रिषभ अरिहंत, अजित संभव अभिनंदन । सुमति पदम सुप्पास, चंद्रप्रभ कुमति निकंदन ॥ सुविधि सीतल श्रेयंस, वले वासुपूज वखाणुं । विमल अनंत धर्मनाथ, सांति जिन सोलम जाणुं ॥ श्रीकुंथुनाथ अर मल्लि जिन, मुनिसुव्रत नमि नेमि भणि ॥ श्रीपार्श्वनाथ जिनहरख जपि, महावीर सुर मुगट मणि ॥६॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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