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________________ ३५२ श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली तरइपुर माझि वसइ, दूठ च्यारूं चोर रे, राति धंस तेरउ धन, लूटइ ठोर ठोर रे ॥२ऊ०॥ काचउ कोट जोर जम-दल लीनउ घेर रे, काहे बल फोरइ नहीं, गति समसेर रे ऊ० साहस सधीर धरि, प्रभुता न खोइ रे, कहइ जिनहरख ज्यु, जइत वार होइ रे ॥३ऊ०॥ (२५) प्रबोध राग-कल्याण जोवन ज्युं नदी नीर जात हइ अयाण रे । काहे फूलि रह्यउ यउ तउ अथिर तुं जाणिरे ।जो०॥ जोवन मइ रातउ मदमातउ फिर जोर रे । काम कउ मरोयें कछु देखड़ नहीं ओर रे ॥१जो०॥ कामिनी सुं चाहइ भोग सकल संयोग रे। अलप जीवन सुख वहुत वियोग रे जो रूप देखि जाणइ मोसो न को तीन भुंवन रे।। अइसउ अभिमानी तेरी गत हुइगी कण रे ॥रजो० अंजुरी कउ नोर रहइ, कहउ केती वेर रे । तइसउ धन जोवन न, कोई ता मई फेर रे।जो० भजि भगवंत जोवन कउ लइ लाह रे, जउ जिनहरख मुगतिकीचाहरे ॥३जो०॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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