SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सीमंधर स्तवन ३३७ , निरगुण तउ पिणि ताहरउ जी, मेल्हिज्यो मतां वीसारि । अवर आधार मुझ को नथी जी, ताहरउ एक आधार ॥१२सा॥ स्वामि थोडइ घणउ मानिज्यो जी, चरण कमल तणी सेव । कहइ जिनहरख मुझ आपिज्यो जी, वीनती करूं नितिमेव ॥१३॥ श्री सीमंधर स्तवन ढाल || ऊलालानी ॥ आज मनोरथ फलिया, सुपनइ साहब मिलिया। भाग्य सयोगह ए दीठा, भव भवना दुख नीठा ॥१॥ पाप गया सहू दूरइ, जिम कसमल नही पूरइ। पुन्य दशा हिवइ जागी, प्रभुजी सुं लय लागी ॥२॥ नीरंजन निरमोही, निर्मल तुझ काया सोही। कचण वरण शरीर, सायर जेम गभीर ॥३॥ मेरुतणी परि धीर, करम विदारण वीर । समता रस नउ तुं दरीयउ, अनंत गुणे करी भरीयउ ॥४॥ प्रभुजी नी सूरति सोहइ, सुर नर ना मन मोहइ । अपछरा प्रभुजीइ आगइ, नाटक करइ मन रागइ ॥१॥ त्रिगढा माही विराजह, कनक सिंघासण छाजइ । सुरपति चामर ढालइ, मोह मिथ्या मति टालइ ॥६॥ बारह परषदा आवइ, निज निज ठाम सुहावड् । चउमुख धर्म प्रकाशइ, सह को नइ प्रतिभासइ ॥७॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy