SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 402
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३२ श्री जिनहर्प ग्रन्थावली श्री सीमंधर जिन स्तवन श्रीसीमंधर साहिबा, वीनतड़ी अवधार लाल रे। परम पुरुष परमेसरू, आतम परम आधार लाल रे ।। श्री १ ॥ केवलग्यान दिवाकरू, भांगे सादि अनंत लाल रे। भासक लोकालोक को, ग्यायक गेय अनंत लाल रे ॥श्री २ ॥ इन्द्र चन्द्र चक्कीसरु, सुर नर रहे कर जोड़ लाल रे । पद पंकज सेवे सदा, अणटुंते इक कोड़ लाल रे ।। श्री ३ ॥ चरण कमल पिंजर बसे, मुझ मन हंस नितमेव लाल रे। चरण सरण मोहि आसरो, भव भव देवाविदेव लाल रे।श्रीष्ठा अधम उधारण छो तुसे, दूर हरो भव दुःख लाल रे। कहे जिनहरप मया करी, देख्यो अविचल सुक्ख लाल रे|श्रीशा अथ सीमंधर जिन स्तवन पूर्व विदेह पुखलावती, जयो जगपती रे । श्री सीमंधरस्वामी, प्रहसम नित नमुं रे ॥१॥ जगत्रय भाव प्रकाशता, भवि प्रतिबोधता रे । उपगारी अरिहंत, प्रहसम नित नम रे ॥ २ ॥ धन्य नयरो धन्य ते नरा, धन्य ते धरा रे।। विचरै जिहां जिनराज, प्रहसम नित नम रे ॥ ३ ॥ धन्य दिवस धन्य ते घड़ी, देखK आंखड़ी रे। भक्त बच्छल भगवंत, प्रहसम नित नमुं रे ॥ ४ ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy