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________________ श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली श्री चौवीस जिन स्तवन ढाल - गौड़ी पहिलो आदि जिगंद, सुरिंद नमें जसु पाय । नाभि पिता मरुदेवी, मात विख्यात कहाय । अजित अजित जिणराज, विराजत मुगुण सुजाण । जितसत्रु विजया देवी, सुसेवित राणो रांण ॥ १ ॥ संभवनाथ सनाथ, सुरासुर सारे सेव । राइ जितारि सुसेनां, जननी जासु कहेव । अभिनन्दन ससि चंदन, सीतल निरमल काय । संवर तात कहात, सिधारथ राणी माय ॥ २ ॥ सुमति सुमति दातार, जगत आधार अजीत | मेघ महीधर दीपति, मंगला मात चढ़ीत | पद्मप्रभु छडो जन, तारक वारक दुक्ख । घर धरणीथव सधव, सुसीमां सतीयां मुख्य ॥ ३ ॥ सत्तम श्रीय सुपास, तात प्रतिष्ठित सारी । चन्दप्रभु महसेण, लखमणा जस सुखकारी ॥ ४ ॥ सुविध जिनंद सुग्रीव, रामा मात चखाणी । सीतल दृढरथ तात, नंदा सीयल सयाणी ॥ ५ ॥ श्रेयांस विसन नरिन्द, माता विष्णु कहीरी । वासपूज्य वसपूज्य, जननी जया सहीरी ॥ ६ ॥ ३३०
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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