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________________ ३२७ चौवीस जिन स्तवन श्री अभिनंदन चंदन सरिखड, नगरी विनीता संवर तात । माय सिधारथा उअरई ऊपना, वानर लंछण जगविख्यात ॥श्च०॥ सुमति सुमतिदायक जिन पॉचमउ, नयरी विनीताकेरउ राय। मेघपिता मायडी जसु मांगला, लंछण कोंच रह्यउ प्रभुपाय॥६च०। माय सुसीमा धरनृपकुलतिलउ, पदमप्रभ कोशंबी जात । कमल विमल लंछण रलियामण, हीयडइधरीयइ प्रभुदिनराति ७च। स्वामि सुपास जिणेसर सातमउ, पृथिवीनंदन तात प्रतिष्ठ । स्वतिक लंछण कंचण देहडी, नगरी वणारिसीराय विशिष्ठ ।८च। चन्द्रपुरी चंद्रप्रभ आठमउ, महसेन लखणा नउ अंगजात । लंछण चंद्रकला संपूरीयउ, चरण कमल पूजीजइ प्रात ।।६च०॥ रामाय सुग्रीव सुतनु नमु, नवमउ सुविधि जिणेसर देव । काकंदी नयरी प्रभु जनमीया, लंछणमगर करइ पाय सेव ।।१०च।। दसमउ सीतलनाथ नमुंसदा, दृढ़रथ नंदा उयरइ हंस । जनम नगर भद्दलपुर जाणिये, श्रीवच्छ लंछण कुलअवतंस ॥११॥ विष्णु पिता विष्णुश्री मायडी, इग्यारमउ जिन श्रीश्रेयांस । सीहपुरी नयरी रलीयामणी, पडगी लंछण करइ प्रसंस ॥१२च।। श्री वसुपूज्य पिता वासुपूज्यनउ, जणणी जया कहीजइजास। चंपानयरी नउ प्रभु राजीयउ, लंछण महिप मनोहर तास ॥१३च॥ चिमल जिणेसर नमइ तेरमउ, कृतवर्म श्यामाराणी माय । लंछण जास वराह विराजतु, कांपिलपुर केरु राय ॥१४॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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