________________
- श्री जिनहर्ष प्रधावली चंद्रप्रभ तउ तेहवउ, दोप न दीसइ कोइ ॥ ८॥ विधि सं वंदु सुविधिजिन, दीपइ कंचण काय । पिता सुग्रीव नरेसरु, रामा माय- कहाय ।। ६ ।। थायइ हीयडउ देखतां, सीतल सीतलनाथ । तपति मिटइ भव भव तणी, मुगतिपुरी नर साथ ॥१०॥ उपगारी इग्यारमउ, सुखकर श्री श्रयंस । कनक वरण तारण तरण, मुगति सरोवर हंस ॥ ११ ॥ वासुपूज्य वसुपूनि सुत, जणिणि जया सुनंद । चरणकमल सेवा थकी, लहीये परमाणंद ॥ १२ ॥ विमल विमल मति ध्याइयइ, पातक दूरि पुलाइ । जिम आदीत उदय थया, रयणि तिमिर मिट जाइ ॥१३॥ निज तन मन निर्मल करी, नमीये स्वामि अनंत । मन वंछित फल पामीये, लहीये सुख्य अनंत ॥ १४ ॥ धर्म धुरंधर धर्म जिन, भानु नरिंद मल्हार । चित चरणे जउ राखीयो, तउ तरीये संसार ।। १५ ।। शांतिकरण श्रीशांति जिन, विश्वसेन अचिरानंद । कंचण काया सोलमउ, तोडइ भवना फंद ॥ १६ ॥ कुंथु जिणेसर जगतपति, जगनायक जिनचंद । . जगतारण जग उद्धरण, जगगुरु जगदानंद ॥१७॥ श्री अरिहंत अढारमउ, अरिगंजण अरनाथ । चरण कमल रज सिर धरी, थइये परम सनाथ ॥ १८ ॥