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________________ [ २७ ] १७६३ तक अन्तिम जीवन पाटण में ही विताया और स्वर्गवासी भी वहीं हुए थे अत. स० १७३६ के वाद की कृतियो में गुजराती भाषा का पुट पाया जाना स्वाभाविक ही है। सुकवि जिनहर्पजी का अपनी कृतियो के निर्माण में प्रधान लक्ष्य सर्वजन कल्याण का था। इसीलिए प्राकृत, सस्कृत भाषा में आपने एक भी कृति न रचकर समस्त रचनाए लोकभाषा में ही निर्माण की। दीवालीकल्प बालावबोध, पूजा पचाशिका एव मौनेकादशी बाला~ये तीनों रचनाए टीका रूप होने से गद्य में हैं, अवशिष्ट छोटी-चडी सभी रचनाए पद्यात्मक है, जिनकी सख्या बड़ी विशाल है और छोटी रचनाए तो इस ग्रन्थ के साथ दे दी गई है, यहाँ रचना सवतादि उल्लेखयुक्त कृतियों की तालिका दी जा रही है । कवि की सबसे बडी रचना १ शत्रुञ्जय माहात्म्य रास है, जो ८५०० श्लोक परिमित है। आपकी समस्त कृतियो का परिमाण सम्भवतः एक लाख श्लोक के लगभग होगा। इतने अधिक रासादि चरित्र काव्य और वह भी केवल लोकभाषा में रचना करने वाले कवि आप एक ही है। अतः राजस्थानी-गुजराती के साहित्य स्रष्टाओ में आपका स्थान अत्यन्त गौरवपूर्ण है। (१) चन्दन-मलयागिरि चौपाई, स० १७०४ वै० शु० ५ गुरु गा० ३७२ (स० न० ४२०४) . (२) कुसुमश्री महासती चौपाई ढा० ३१ स० १७०७ मि० ब० ११ गा० १०३४ (सं० १३२०) (३) गजसिंह चरित्र चो० स० १७०८ पत्र ३६
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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