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________________ ३२८ श्री तिनहर्ष ग्रन्थावली श्री चतुर्विशति जिन स्तवनं दान | तीरथ ते नमुरे ॥ पहनी रिखम अजित अभिवंदीयह, चिर नंदीयह रे। संभव सुख दातार, जिन चउवीसे नमुं रे ॥१॥ अभिनंदन जिन पूजीयइ, नवि धूजीयह रे । सुमति पदमप्रभु पाइ | जि ॥ २ ॥ श्रीसुपास चंदप्रभ सदा, प्रणमुं मुदा रे। नवम सुविधि जिणंद ॥ ३ जि ।। सीतल सीतल लोचन, भव मोचन रे ।। श्रेयंस श्री वासुपूजि ॥ ४ जि ।। विमल अनंत सुख दीजीयह, जस लीजिये रे।। सेवक राजि निवाजि ॥ ५ जि ॥ धर्म शांति जिन सोलमउ, कंथ नित नमउ रे। अर अरिहंत महंत ॥ जि ६ ॥ मल्लि मुनिसुव्रत वीसमउ, एकवीसमउ रे । नमि नमि त्रिकरण सुद्धि | जि ७ ॥ श्री नेमिश्वर पासजी, दुरमती तजी रे। वीर नमु चित लाइ ॥ जि ८ ॥ चउवीसे जिन गाईयइ, सुख पाईयइ रे । रिद्धि सिद्धि नव निद्धि ॥ जि ६ ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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