SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 384
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१४ श्री जिनह प्रन्थावली तूं तू अल्ला पीर फकीर मुसाफिर, तूं जोगी तूं जिंदा है। काजीमुल्लां मरद अटल्ला, तू ही शेप फरीदा है ||२३|| उपाया धंदे लाया माया में मुलकंदा है । तबूढ़ा वाला मद मतवाला, तूं पक्का वाजंदा है। तूं कच्चा कवला सव सबला, सच्चा मझरहंदा है । बाबा गोसांई भेद न पाई, भीड़ पढ्यां आवंदा है || २४ ॥ नारायण जोगपरायण, माधव तू ही मुकंदा है । कवलाधारी तूं अवतारी, तूं देवादेवंदा है । तं एकाथप्पे एकउथप्पे, अति निज सुध थापंदा है । तो देवलमझां लोक तिसंझां, सीरणिया वाटंदा है ॥ २५ ॥ गुणगीत पयासे कीरत भासे, झीर्ण स्वर गावंदा है। कालागुरू अगरसुं मलयागर, धूपेड़ा धुखंदा है । कुंकुंम कस्तुरी केसरपूरी, चंदन सुं चरचंदा है । मरूआ मचकुंदा फूला हंदा, टोडर कंठ ठवंदा है ॥ २६ ॥ चंपागुलावां भरीय छावां, परमल तिहां वादा है | कसबोई चंगी रचीये अंगी, फूलां बीच फावंदा है । आभूषण धरियां तन ऊपरियां, कुंडल कान झिगंदा है। सूरत सोहंदी मूरत हंदी, दीठां नेण ठरंदा है ॥। २७ ॥ तेरी बलि जाउं मोजां पाउ, विनती तं हि सुणंदा है। क्या कत्थू गल्लां हुकम अदल्लां, समकित मन उलसंदा है। सिद्धांदावासा तिहारहासा, तुझ सेवक विलसंदा है ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy