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________________ ३१२ श्री जिनहर्य ग्रन्थावली देवाचल जेसा धीरपएसा, पावस पीड़ सहंदा है। तिण अवसर वरदां धरणीधरदां, आसण वेग चलंदा है। तिण अवधि प्रयुंजी दीठे प्रभुजी, तन मन अति उलसंदा है ।।१३।। तिहां पदमावता देवी आदि सकत्ती, हिल' मिल वेग वहंदा है। हुय के हेराना बैठ विमाना, पावां आय लगंदा है। फण नागहजारां कर विसतारां, छत्तर ज्यं छादा है। ले आपण खंधे प्रेम निबंधे, पूरव प्रीत सुखंदा है ॥१४॥ इन्द्राणी नारी सब सिणगारी, जोबन अंग झिलंदा है। राकापति वयणी मिरगानयणी, संदर रूप सोहंदा है। अणियाला कजल झलके विजल, खूब वणाव वणंदा है। नक वेसर नत्थां लाल सुकत्था, विच मोती झलकंदा है ॥१॥ ओढण पाटवर झीणी अंबर, आभूपण झलकंदा है। उर कञ्चु कसियां तन उल्लसियां, कामघटा चहरंदा है। पहिरण तन खूवां हरियां लूवां', सोलेही सोहंदा है। कटि मेखल कडियां सोने जड़ियां, विच हीरा झलकंदा है ॥१६॥ . घमके घुग्घरीयां पाए धरियाँ, पग नेर रणकंदा है। लेझांझर ताला ताल कंसाला, पखावज वाजंदा है। कुहकै करनालां वीच रसालां, जंगी ढोल धुरंदा है । वाजे सरणाई सखरी घाई, नगारा रोडंदा है ॥ १७ ॥ पउमा वैसट्टा आण उलट्टां, नाटिक मिल नाचंदा है। वैस विमान २ मोहंदा ३ दूबा ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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