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________________ ३०२ श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली जगतगुरु सांभलि मुझ अरदास । तू त्रिभुवन नुं राजीयउ जी, पूरउ माहरी आस ।जा . पोस बहुल इग्यारसे जी, लीघउ संयमभार । करम खपाची घातिया जी, उज्जल ध्यान संभारि ४४] चउथी अंधारी चैत्रनी जी, पाम्यं केवलज्ञान । समवसरण देवे रच्यं जी, बारह परपद मान ॥ ४५ ज ।। संघ चतुचिंध थापीयउ जी, सह नइ कार उपगार। समेतशिखर अणसण कीयु जी, साधु तणे परिवार ॥ ४६ज ॥ श्रावण सुदि आठिम दिनइ जी, प्रभु पहुता शिवपास । सेवक जाणी राखीवर जी, अमनइ पिणि निज पासि ॥४७जा आससेन नृप कुल तिलउ जी, वामा राणी जात । धरणीपति पदमावती जी, सेव करड् दिन राति ॥ ४८ ज ।। भव भव माहरइ तू धणी जी, ताहरउ मुझ आधार । तुझ विणि केहनइ नवि नमुं जी, मैं कीधी इक तार ॥४६॥ हुँ भमीयउ भवमां घणं जी, तुझ विणि जगदानंद । चरण-सरण हिवइ ताहरा जी, घउ जिनहरख आणंद ॥५०जा। श्री पार्श्वनाथ दोधक छत्रीशी पास चरण चितलाइ, गुण गाइसि गौरव करे । पवित्र करिसि सुपसाय, आतम अससेण रावउत ॥ १ ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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