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________________ सुकवि जिनहर्ष यो तो राजस्थान के सैकडो जैन कवियों ने मातृभाषा राजस्थानी की अनुपम सेवा की है, पर उनमें अठारहवी शती के जैन कवि जिनहर्प अपना विशिष्ट स्थान रखते है। उनकी रचनाए प्रचुर परिमाण में पायी जाती हैं। आपने राजस्थानी, हिन्दी, गुजराती-तीनों भाषाओ में विशाल साहित्य निर्माण कर साहित्य की बडी भारी सेवा की है, फिर भी आपकी गुरु-परम्परा के अतिरिक्त जन्मस्थान, वश, माता-पिता, जन्म व दीक्षाकाल एवं जीवन के विशिष्ट कार्यादि सभी इतिवृत्त अज्ञात है। आपके अन्थादि में जो भी ज्ञातव्य उपलब्ध हैं, उन्ही के आधार से सक्षिप्त प्रकाश डाला जा रहा है। । गृहस्थावस्था का नाम व दीक्षा ___आपने जसराज बावनी, दोहा-मातृका बावनी, बारहमास द्वय तथा दोहों में अपना नाम 'जसा' या 'जसराज' दिया है, जिसे आपका गृहस्थावस्था का नाम समझना चाहिए। जैन-दीक्षा के अनन्तर आपका नाम 'जिनहर्प' प्रसिद्ध किया गया था। आपकी सर्वप्रथम रचना चन्दनमलयागिरि चौपाई सवत् १७०४ में रचित उपलब्ध है । अनुमानत आपकी अवस्था उस समय १८-१९ वर्ष की तो अवश्य रही होगी। अत आपका जन्म स० १६८५ के लगभग और दोक्षा स० १६६५ से १६६६ के मध्य श्री जिनराजसूरिजी' के कर-कमलों से होना सम्भव है। १-इनके विषय में विशेष जानने के लिए परिषद द्वारा प्रकाशित जिन__ राजसूरि कृति-कुसुमाञ्जली देखिये।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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