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________________ श्री पार्श्वनाथ दशभव गर्भित स्तवन रह गुरु नी देसणा सांभली, पाम्यउ संवेग सार । मो । राज्य तजी दीक्षा भजी, अप्रतिबंध विहार || मो०१४मं ॥ तप जप संयम खप करइ, ल्यड़ सूझतु आहार । मो० । आउ पूरण अणसण करी, चउथउ भव अवधारि ॥ मो१६ || मरुभूति नउ जीव ऊपनउ, बारमे अच्युत नाम । मो । । देवलोके थयउ देवता, चढतड़ पुन्य प्रमाण || मो१७मं ॥ बावीस सागर आउखड, सुख भोगवड अपार । मो । एतउ भव थयउ पांचमउ, सांभलिज्यो नर नारि || मो१८ || तिहां थी तेह चवी करी, पश्चिम महाविदेह । मो० । वज्रनाभ राजा थयउ, रूप यौवन गुण गेह || मो१६मं ।। राज्य तजी व्रत आदर्यउ, पाले निरतीचार | मो | दुक्कर बहुतर तप करह, पालह सुध आचार || मो २० मं ॥ अरस निरस आहार सूं, काया कीथी खीण । मो । अंतर संलेहण करी, छठउ भव सुप्रवीण | मो २१ मं ॥ ढाल ४ ॥ रसीयानी ॥ साधु समाधि मरीनइ ऊपनउ, मध्य ग्रैवकड़ रे देव रे । भविका 'सातमउ भव जाणउ मरुभूति नउ, तिहां थी चवीयउ रे टेव रे ||२२|| खेत्र विदेहई आवी अवतर्य, चक्री सुवर्णवाहु नाम रे । भ । पट् खंड राज्य लीला सुख भोगवी, दीक्षा लीधी रे तामरे । भ२३सा छठ अठम आदिक बहु तप करह, सेवड़ थानक रे वीस रे | भा विचरे गाम नगर पुरवर वनई, परीसह सहइ रे बावीस ||भा२४सं
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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